महाबोधि विहार मुक्त करो! 1949 का 'काला कानून' रद्द हो #bhojpuri #buddhis...


स्रोतों के अनुसार, बोधगया में स्थित महाबोधी महाविहार को सम्राट अशोक ने बनवाया था

एक स्रोत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "महाबोधी महाविहार पर सम्राट अशोक जी ने महाबोधी महाविहार बनवाया था"। इसी स्रोत में यह भी बताया गया है कि बाद में अनागरिक धम्मपाला ने इसकी मुक्ति का आंदोलन शुरू किया था क्योंकि वहाँ पंडित पूजा पाठ कर रहे थे।

Mahabodhi Temple Management Protest

स्रोतों के अनुसार, बोधगया में चल रहे धरना प्रदर्शन और आमरण अनशन में बोधगया टेंपल मैनेजमेंट एक्ट 1949 (BT Act 1949) को निरस्त करने की मांग की जा रही है

यह इस आंदोलन और अनशन की मुख्य मांग है, जो 12 फरवरी से शुरू हुआ है। प्रदर्शनकारी इस एक्ट को "काला कानून" बताते हैं और मांग करते हैं कि इसे जल्द से जल्द खत्म किया जाए। उनका आरोप है कि इस एक्ट के कारण बौद्ध भिक्षुओं के अधिकारों का हनन हो रहा है और वे चाहते हैं कि महाबोधी विहार को पूरी तरह से बौद्धों को सौंप दिया जाए।

इस एक्ट के तहत ही नौ-सदस्यीय बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) का गठन किया गया था।

बोधगया में महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को लेकर बौद्ध भिक्षुओं का विरोध प्रदर्शन और संबंधित मुद्दे।

मुख्य बिंदु:विरोध का कारण: बौद्ध भिक्षु बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर के प्रबंधन से गैर-बौद्धों, विशेषकर हिंदुओं के हस्तक्षेप को समाप्त करने और प्रबंधन को पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग कर रहे हैं। उनके विरोध का मुख्य कारण बोधगया टेंपल मैनेजमेंट एक्ट, 1949 (BT Act, 1949) है।

BT Act, 1949: यह अधिनियम महाबोधि मंदिर के प्रबंधन के लिए एक नौ सदस्यीय बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) के गठन का प्रावधान करता है। इस कमेटी में चार बौद्ध सदस्य, चार हिंदू सदस्य और जिले के डीएम पदेन अध्यक्ष होते हैं। बौद्ध भिक्षुओं का आरोप है कि यह अधिनियम दोषपूर्ण है क्योंकि इसमें हिंदुओं को मंदिर के प्रबंधन में बराबर का अधिकार दिया गया है, जबकि यह एक बौद्ध स्थल है।
Mahabodhi Temple Management Protest
प्रबंधन पर आरोप:बौद्ध भिक्षुओं का आरोप है कि मंदिर प्रबंधन में हिंदू-ब्राह्मणों का वर्चस्व है और वे अपनी मनमानी कर रहे हैं।
वे आरोप लगाते हैं कि ब्राह्मण पुजारी बुद्ध की पूजा घंटी बजाकर करते हैं, जो बौद्ध पद्धति के खिलाफ है।
कुछ पंडितों पर मंदिर परिसर में शिवलिंग का आकार देने और बुद्ध की मूर्ति को अन्नपूर्णा देवी बताने का भी आरोप है।
मंदिर परिसर में पिंडदान जैसी हिंदू प्रथाओं के आयोजन पर भी आपत्ति जताई गई है, जिसे वे अतिक्रमण मानते हैं।
उनका यह भी आरोप है कि प्रबंधन में पारदर्शिता नहीं है और दान का पैसा गलत तरीके से ले जाया जाता है।
मंदिर परिसर में होने वाले शोरगुल से साधना करने वाले भिक्षुओं को परेशानी होती है।
ऐतिहासिक संदर्भ:बौद्ध भिक्षुओं का मानना है कि महाबोधि महाविहार सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था।
उनका यह भी कहना है कि ऐतिहासिक रूप से बौद्ध स्थलों पर अतिक्रमण कर हिंदू मंदिर बनाए गए हैं। अयोध्या में खुदाई में बौद्धों की साकेत नगरी निकलने के दावे का भी उल्लेख किया गया है।

महाबोधि मंदिर की मुक्ति के लिए अतीत में भी आंदोलन हुए हैं, जिनमें अनागरिक धम्मपाला और 1992-95 के आंदोलन का जिक्र है।
आंदोलन की वर्तमान स्थिति:बौद्ध भिक्षु 12 फरवरी से धरना प्रदर्शन और आमरण अनशन कर रहे हैं।
इस आंदोलन को मिशन जय भीम से जुड़े लोगों और अंबेडकरवादियों का भी समर्थन मिल रहा है।
यह मुद्दा संसद और राज्य विधानसभाओं में भी उठाया गया है।
फ्रांस, जापान, जर्मनी, इटली सहित कई देशों में भी इस मांग के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं।
मांग:BT Act, 1949 को पूरी तरह से निरस्त किया जाए।
महाबोधि महाविहार का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्धों को सौंपा जाए।
मंदिर प्रबंधन कमेटी में केवल बौद्ध सदस्य होने चाहिए और पूजा पद्धति बौद्ध तरीकों से होनी चाहिए।
सरकार की प्रतिक्रिया और भविष्य:सरकार की तरफ से अभी तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है।
आंदोलनकारी लिखित आश्वासन मिलने तक अपना विरोध जारी रखने पर दृढ़ हैं।
यह आशंका जताई जा रही है कि यदि यह मांग नहीं मानी गई तो यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी रूप ले सकता है।
कुछ लोगों का मानना है कि यह मुद्दा राजनीतिक लाभ और वोट बैंक से जुड़ा हुआ है, इसलिए सरकार इस पर त्वरित कार्रवाई से बच रही है।
Mahabodhi Temple Management Protest

स्रोतों के अनुसार, बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) का गठन 1949 के बौद्ध टेंपल एक्ट के तहत किया गया था। इस एक्ट में मंदिर के प्रबंधन के लिए एक नौ-सदस्यीय कमेटी बनाने की बात कही गई थी।

एक्ट के अनुसार कमेटी में शामिल होते हैं:

  • चार हिंदू सदस्य
  • चार बौद्ध सदस्य
  • जिले का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) जो कमेटी का पदेन अध्यक्ष (Ex-officio President) होता है।

एक स्रोत नौ सदस्यों की कमेटी का वर्णन चार बौद्ध भिक्षु, चार गैर बौद्ध भिक्षु और एक कलेक्टर के रूप में भी करता है। एक अन्य स्रोत में एक पुराने केस के फैसले का उल्लेख है जिसमें कहा गया था कि संचालन चार बौद्ध, चार हिंदू और एक डीएम जो ब्राह्मण समुदाय के होंगे, करेंगे।

कमेटी के सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है

Mahabodhi Temple Management Protest

हालांकि, स्रोतों में कमेटी की वर्तमान संरचना के बारे में अलग-अलग जानकारी भी दी गई है:

  • बोधगया टेंपल वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में डीएम सहित कुल सात सदस्य हैं, जिनमें चार बौद्ध और तीन हिंदू हैं।
  • एक आंदोलनकारी के अनुसार, वर्तमान में कमेटी में केवल दो हिंदू सदस्य हैं, जबकि सेक्रेटरी सहित कुल चार बौद्ध सदस्य हैं। यह पहली बार हुआ है जब कमेटी में बौद्धों का बहुमत है।
  • एक स्रोत यह भी दावा करता है कि पूरा स्टाफ हिंदू है
  • कुछ आंदोलनकारियों का आरोप है कि कमेटी में सिर्फ ब्राह्मणों की ही चलती है और पूरे महाबोधी महाविहार पर ब्राह्मणों का कब्ज़ा है।
  • एक पुजारी सिर्फ शिवलिंग की पूजा के लिए हैं।

कुल मिलाकर, एक्ट में 4 हिंदू, 4 बौद्ध और एक डीएम की संरचना निर्धारित की गई थी, लेकिन स्रोतों के अनुसार वर्तमान में कमेटी की संरचना और नियंत्रण को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं।

बोधगया मंदिर प्रबंधन विवाद एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर हाल ही में धरना प्रदर्शन और आमरण अनशन हुए हैं। यहाँ स्रोतों और हमारी बातचीत के आधार पर इस विवाद से जुड़े कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:

Mahabodhi Temple Management Protest
1. बोधगया मंदिर प्रबंधन विवाद क्या है? यह विवाद बोधगया में स्थित महाबोधी महाविहार (मंदिर) के प्रबंधन और नियंत्रण से संबंधित है। बौद्ध भिक्षुओं और उनके समर्थकों का आरोप है कि मंदिर पर गैर-बौद्धों (हिंदुओं, ब्राह्मणों) का कब्ज़ा है और वहाँ बौद्ध पद्धति के बजाय हिंदू पूजा-पाठ किया जाता है। प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्धों के हाथों में हो।

2. यह आंदोलन कब शुरू हुआ? महाबोधी मंदिर को लेकर चल रहे धरना प्रदर्शन और आमरण अनशन की शुरुआत 12 फरवरी को हुई थी। यह दिन बौद्धों के लिए माघ पूर्णिमा होने के कारण बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह अनशन कम से कम 17 दिनों तक चला था। सम्राट अशोक की जयंती (5 अप्रैल) पर यह मांग और तेज़ हो गई।

3. इस आंदोलन में कौन शामिल हैं? इस आंदोलन में देश भर के बौद्ध भिक्षु और मिशन जय भीम से जुड़े अंबेडकरवादी शामिल हैं। इसमें देश-विदेश के बौद्ध भिक्षु भाग ले रहे हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम जैसे अंबेडकरवादी नेता भी इसमें हिस्सा ले चुके हैं।

4. आंदोलन की मुख्य मांग क्या है? आंदोलन की मुख्य और केंद्रीय मांग बोधगया टेंपल मैनेजमेंट एक्ट 1949 (BT Act 1949) को पूरी तरह से निरस्त करना है। प्रदर्शनकारी इस एक्ट को "काला कानून" बताते हैं। उनकी मांग है कि महाबोधी विहार को पूरी तरह से बौद्धों को सौंप दिया जाए और वहाँ पूजा-पाठ केवल बौद्ध पद्धति से हो।

5. बोधगया टेंपल मैनेजमेंट एक्ट 1949 (BT Act 1949) क्या है? यह अधिनियम 1949 में बनाया गया था। इसी एक्ट के तहत महाबोधी मंदिर के प्रबंधन के लिए बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) का गठन किया गया। प्रदर्शनकारी इस एक्ट को "काला कानून" कहते हैं और उनका आरोप है कि इसके कारण बौद्ध भिक्षुओं के अधिकारों का हनन होता है।

6. बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) में कौन शामिल होता है? 1949 के एक्ट के अनुसार, BTMC एक नौ-सदस्यीय कमेटी होती है। इसमें चार हिंदू सदस्य और चार बौद्ध सदस्य होते हैं, और जिले का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) कमेटी का पदेन अध्यक्ष (Ex-officio President) होता है। एक स्रोत के अनुसार, इसमें चार बौद्ध भिक्षु, चार गैर बौद्ध भिक्षु और एक कलेक्टर होते हैं। एक पुराने केस के फैसले में चार बौद्ध, चार हिंदू और एक डीएम जो ब्राह्मण समुदाय के होंगे, शामिल होने की बात कही गई थी। कमेटी के सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है।

7. कमेटी की वर्तमान संरचना कैसी है, इस पर क्या दावे हैं? कमेटी की वर्तमान संरचना को लेकर अलग-अलग दावे किए गए हैं:

  • बोधगया टेंपल वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में डीएम सहित कुल सात सदस्य हैं, जिनमें चार बौद्ध और तीन हिंदू हैं।
  • एक आंदोलनकारी के अनुसार, वर्तमान में कमेटी में केवल दो हिंदू सदस्य हैं, जबकि सेक्रेटरी सहित कुल चार बौद्ध सदस्य हैं। यह पहली बार हुआ है जब कमेटी में बौद्धों का बहुमत है।
  • कुछ आंदोलनकारियों का आरोप है कि कमेटी में सिर्फ ब्राह्मणों की ही चलती है और पूरे महाबोधी महाविहार पर ब्राह्मणों का कब्ज़ा है।
  • यह भी दावा किया गया है कि पूरा स्टाफ हिंदू है
  • मंदिर में एक पुजारी सिर्फ शिवलिंग की पूजा के लिए हैं।

8. आंदोलनकारियों के मुख्य आरोप क्या हैं? आंदोलनकारियों का आरोप है:

  • महाबोधी विहार पर ब्राह्मणों का कब्ज़ा है।
  • गैर-बौद्ध पुजारी वहाँ हिंदू पूजा-पाठ करते हैं और घंटी बजाते हैं।
  • पुजारी डोनेशन लेते हैं।
  • ढोल मंजीरा बजाकर हल्ला करते हैं, जिससे बौद्ध भिक्षुओं की साधना और ध्यान में बाधा आती है, जहाँ शांति होनी चाहिए।
  • गैर-बौद्ध बुद्ध को विष्णु का अवतार बताते हैं।
  • महाबोधी विहार को शिवालय बताते हैं।
  • वहाँ शिवलिंग का आकार बनाया गया है, जबकि मूल रूप से वहाँ केवल बुद्ध की मूर्ति थी।
  • महामाया (बुद्ध की माँ) को अन्नपूर्णा देवी और बुद्ध की मूर्ति के पास पांच पांडवों का नाम लिया जा रहा है।
  • पिंडदान जैसे अनुष्ठान मंदिर के गेट के पास किए जा रहे हैं, जबकि इनके लिए अन्य स्थान (जैसे विष्णु पद मंदिर) हैं।
  • पूरा स्टाफ हिंदू है
  • बीटी एक्ट 1949 एक काला कानून है जो बौद्धों के अधिकारों का हनन करता है।
  • सरकार जानबूझकर इस मुद्दे को अटका रही है।

9. महाबोधी मंदिर किसने बनवाया था? स्रोतों के अनुसार, बोधगया में स्थित महाबोधी महाविहार को सम्राट अशोक ने बनवाया था

10. मंदिर के प्रबंधन को लेकर पहले भी क्या विवाद या आंदोलन हुए हैं? हाँ, मंदिर के प्रबंधन को लेकर पहले भी आंदोलन हुए हैं। सम्राट अशोक द्वारा बनवाए जाने के बाद, अनागरिक धम्मपाला ने इसकी मुक्ति का आंदोलन शुरू किया था क्योंकि वहाँ पंडित पूजा पाठ कर रहे थे। उन्होंने एक केस लड़ा और गया के मैजिस्ट्रेट के यहाँ जीते, जिसके बाद मंदिर का संचालन चार बौद्ध, चार हिंदू और एक डीएम (ब्राह्मण कम्युनिटी से) द्वारा करने का फैसला हुआ। महात्मा गांधी ने भी 1922 में कहा था कि आजादी के बाद यह स्थल बौद्धों को दिया जाएगा, लेकिन 1949 में कानून बना। 1992 में मंत्री सुरेश देसाई के नेतृत्व में और 1995 में 85 दिनों तक चला एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आंदोलनकारियों को BTMC में शामिल कर आंदोलन शांत कराया था और सिस्टम के अंदर रहकर मांगें पूरी करने को कहा था। वर्तमान अनशन के नेता प्रज्ञाशील उस समय BTMC में शामिल हुए थे।

Mahabodhi Temple Management Protest

11. सरकार का रुख क्या है और आंदोलनकारी क्या चाहते हैं? स्रोतों के अनुसार, पिछली सरकारें (लालू जी, नीतीश जी) भी इस मुद्दे पर वोट बैंक की राजनीति के कारण पूरी तरह से कार्रवाई करने से हिचकिचाती रही हैं। नीतीश कुमार ने 2004 में माना था कि यह बौद्धों का है, लेकिन केंद्र सरकार और वोट की राजनीति का हवाला दिया था। आंदोलनकारी मानते हैं कि 1949 के एक्ट को बदलना आसान नहीं है और इसमें समय लगेगा। वे सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं और जब तक यह नहीं मिलता, तब तक वे बैठे रहेंगे।

12. इस आंदोलन का संभावित परिणाम क्या हो सकता है? प्रदर्शनकारी बिना लिखित आश्वासन के पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उनका मानना है कि सरकार जानबूझकर मामले को अटका रही है। अगर बौद्ध भिक्षुओं की मांग नहीं मानी जाती है, तो यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी रूप ले सकता है। फ्रांस, जापान, जर्मनी, इटली जैसे देशों में भी इस मुद्दे पर प्रदर्शन हो रहे हैं।

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